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“गिल्लू”

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    29 मई  2020            गर्मियों का दिन था, परंतु इस साल बाकी वर्षों की तरह कड़कती धूप का एहसास कम ही था। मैं और मेरी छोटी बहन, हम दोनों आंगन में पेड़ की छांव के नीचे बैठे हुए थे... तभी अचानक हमारी  नज़र एक नन्ही - सी जान पर जा अटकी, जो आम के पेड़ से नीचे उतरकर जमीन पर फुदक रही थी। वह नन्ही - सी जान और कोई नहीं....एक छोटी सी, प्यारी सी गिलहरी थी।  वह फुदकती हुई इतनी सुंदर लग रही थी कि हम उसकी ओर खिंचे चले आए। अब हम तो ठहरे बच्चे... जो चीज अच्छी लगी बस उसे पाने की जिद्द...। उसे देखकर हमारे मन में उसे पकड़कर अपने पास रखने का ख्याल आया। बस और क्या...? हम उसे पकड़ने का इंतजाम करने लगे।             हम दोनों ने हाथ में बाल्टी लिया और चुपके से हौले -  हौले उसके पास गए, पर तब तक छोटी गिलहरी ने हमारे पैरों की आहट सुन ली थी इसलिए वह इधर - उधर भागने लगी, परंतु छोटी होने के कारण वह ज्यादा तेज नहीं भाग पा रही थी तो हमने उसे बाल्टी से ढक लिया। उसे पकड़ पाना इतना आसान नहीं था.... ज्यों - त्यों बहुत मुश्किल से हमने उसे बाल्टी से बाहर निकाल कर एक पिंजरे में रख दिया।          

“मेरा सफ़र” (रांची से दार्जिलिंग तक)

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         परिचय   :- ये कहानी 2016 की है। जब मैं कक्षा 9 में पढ़ाई के दौरान अपने शिक्षकों और दोस्तों के साथ एक शैक्षणिक भ्रमण के लिए दार्जिलिंग गई थी। उस दौरान मैंने क्या क्या अनुभव किया, कहां कहां घूमा, क्या देखा..? उसे इस ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूं। साथ ही ये मेरी पहली पोस्ट है, मैं आशा करती हूं कि ये आप लोगों को पसंद आएगी।  तो हमारा सफ़र कुछ इस तरह शुरू होता है...      रात में हम सभी दोस्त और शिक्षक दार्जिलिंग जाने के लिए रांची स्टेशन पहुंचे। 8:30 बजे की हमारी ट्रेन थी। वहां पहुंचने के बाद सभी ट्रेन के आने का इंतज़ार करने लगे, इंतज़ार खत्म हुआ, ट्रेन आयी, हम सब अपने अपने सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी देर बातचीत किए फिर रात का खाना खाकर लेट गए। दोस्तों के साथ होने के कारण हमें नींद नहीं आ रही थी फिर भी थोड़ा बक बक करके सो गए। ऐसी ही रात बीत गई।             सुबह हो चुकी थी...करीब 6:30 बजे मेरी आंखें खुली तो देखा कि सारे लोगों में से कुछ लेटे हुए हैं,  कुछ उठकर ब्रश करने जा रहे हैं...हमने भी अपना हाथ मुंह धोया फिर थोड़ी देर बाद नाश्ता किया। नाश्ते में ब्र