“मेरा सफ़र” (रांची से दार्जिलिंग तक)


        परिचय :- ये कहानी 2016 की है। जब मैं कक्षा 9 में पढ़ाई के दौरान अपने शिक्षकों और दोस्तों के साथ एक शैक्षणिक भ्रमण के लिए दार्जिलिंग गई थी। उस दौरान मैंने क्या क्या अनुभव किया, कहां कहां घूमा, क्या देखा..? उसे इस ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूं। साथ ही ये मेरी पहली पोस्ट है, मैं आशा करती हूं कि ये आप लोगों को पसंद आएगी। 

तो हमारा सफ़र कुछ इस तरह शुरू होता है...


     रात में हम सभी दोस्त और शिक्षक दार्जिलिंग जाने के लिए रांची स्टेशन पहुंचे। 8:30 बजे की हमारी ट्रेन थी। वहां पहुंचने के बाद सभी ट्रेन के आने का इंतज़ार करने लगे, इंतज़ार खत्म हुआ, ट्रेन आयी, हम सब अपने अपने सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी देर बातचीत किए फिर रात का खाना खाकर लेट गए। दोस्तों के साथ होने के कारण हमें नींद नहीं आ रही थी फिर भी थोड़ा बक बक करके सो गए। ऐसी ही रात बीत गई।
            सुबह हो चुकी थी...करीब 6:30 बजे मेरी आंखें खुली तो देखा कि सारे लोगों में से कुछ लेटे हुए हैं,  कुछ उठकर ब्रश करने जा रहे हैं...हमने भी अपना हाथ मुंह धोया फिर थोड़ी देर बाद नाश्ता किया। नाश्ते में ब्रेड, जैम और सेब वगैरह था। फिर आपस में हमारी बातें शुरू हुई, बात करते करते हम कहां खो गए पता ही नहीं चला... रास्ते में हमने देखा कि वहां बहुत सारे आम के पेड़ थे जो कि खेतों के बीचोबीच लगाए गए थे साथ ही खेतों में अनानस के पौधे भी थे। बहुत ही आकर्षक भरा सुंदर नज़ारा था...ताड़ और खजूर के वृक्ष भी इतने ज्यादा थे, उनपर से तो हमारा नज़र ही नहीं हट रहा था। सफ़र करते करते थोड़ी और दूर जाने पर हमने एक नदी देखा, उसका नाम था ‘फड़क्का’। 

जिसमें 106  पिलर थे। यह नदी इतनी लंबी चौड़ी थी कि हम सब देखते ही रह गए, ऐसे ही रास्ते का नज़ारा देखते देखते हमलोग दोपहर में  करीब  12:30 बजे NJP स्टेशन पहुंच गए। वहां से थोड़ी दूर चलकर एक रेसटोरेंट में लंच किए। लंच के बाद हम वहां से बस के द्वारा दार्जिलिंग के लिए रवाना हुए। धीरे धीरे हम हिमालय चढ़ने लगे। वहां ऊपर जाने का बस एक ही रास्ता था, एकदम घुमावदार और चढ़ानदार पहाड़ी रास्ता...


 सड़क के किनारे छोटी हिमालयन रेल की पटरी भी थी। वहां का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुंदर था, जैसे जैसे हम ऊपर चढ़ते गए वहां लंबेे-लंबे पाइन ट्री दिखाई देने लगे, और ऊपर जानेे पर बादल दिखाई देने लगा। पहली बार अपनी आंखों के सामने बादलों को उमड़़ते-घुमड़ते हुए देखा। ऊपर सेेेे नीचे देखने पर बादल ऐसे दिखाई दे रहे थे जैसे बहुत बड़ा समुद्र हो और हम उसके ऊपर हैं। कभी-कभी तो रास्ता छोड़ चारों तरफ सफेद ही सफेद दिखाई दे रहा था। नीचेेे देखने पर बहुत गहरा घाटी था, पेड़़ पौधों से भरा... एकदम हरा - भरा....। वहां के बने घर ढालू छत वाले थे, छोटे-छोटे ही थे लेकिन बहुत सुंदर थे। देखते ही देखते हम सब करीब  शाम 07:00 बजे दार्जिलिंग पहुंच गए। हम जिस होटल में ठहरे थे उसका नाम था-मेगमा होटल। 5, 6 घंटे बस में सफर करने के कारण हम सब बहुत थक चुकेे थे इसलिए हमने रात का खाना खाया फिर थोड़ी देर टी.वी. देखकर सो गए।


           अगले दिन सुबह 4:00 बजे हमारी शिक्षिकाएं हमें उठाने आयीं। आज हमारा दार्जिलिंग घूमने का पहला दिन था। आज हमें सबसे पहले सूर्योदय  (Sunrise) देखने जाना था। हम लोग उठकर सीधे सूर्योदय देखने के लिए 
टाइगर हिल  (Tigger Hill) गए लेकिन हम सूर्योदय नहीं देख पाए, सूर्य निकलने ही वाला था कि अचानक से बादल छा गए। 
        वहां से निकलकर हमलोग बताशा लूप 
(Batasia Loop) गए वहां छोटे-छोटे पेड़-पौधे देखे जो कि एक ही आकार में सजे हुए थे। हम सब वहां की वेशभूषा (कपड़े, श्रृंगार) पहनकर फोटो खिंचवाए।
 इसके बाद हम सब रॉक गार्डन (Rock Garden) गए, वहां का दृश्य भी बहुत सुंदर था। वहां का झरना, रंग-बिरंगे फूल, गुफाएं सभी मनमोहक थे। झरने की आवाज से तो मेरा कान ही बंद हो गया था। फिर वहां से निकलकर रास्तेे में हमने दूर से कंचनजंगा पर्वत देखा, उसमें एक अजीब सी चमक थी जैसे कोई बड़ा सा हीरा चमक रहा हो।
    फिर हम सब वापस होटल आकर नाश्ता किए, फिर तैयार होकर घूमने निकले।जूलॉजिकल पार्क (Zoological Park) में हमने छोटे- बड़े अनेेेक प्रजाति केे रंग- बिरंगी पक्षियां देखे, जो एक बड़े से पिंजरे में रखे गए थे। वहां हर तरह के जानवर भी थे जैसे कि बाघ, भालू, हिरण, लाल पांडा, बंंदर, भेेेड़, बड़ी प्रजाति वाली बकरियां, गैंडा इत्यादि। पक्षियों में रंग बिरंगी मोर भी थी। वहां से हम हिमालयन  इंस्टीट्यूट  ट्रैकिंग (Himalayan Institute Tracking)गए। यहां पर हिमालय चढ़ने वाले सभी प्रसिद्ध व्यक्तियों केे नाम और उनसे जुड़ी सभी चीजों को संग्रह करके रखा गया है।
फिर  चाय बगान (Tea Garden) देखनेे गए। यहां का नज़ारा काफी खूबसूरत था। चाय बगान के साथ-साथ यहां पर हमने बादलों को बहुत ही करीब से देखा, बादलें हवाओंं की तरह हमें छूकर गुजर रही थी। यहां मैंने जो महसूस किया वह मेरे जीवन का सबसे अनोखा पल था।  फिर पास की दुकान से हम चाय की पत्तियां खरीदे फिर वापस होटल आ गए। थोड़ी देर आराम किए फिर शाम को  खरीदारी(Shopping) के लिए पास के मार्केट में गए, वहां से हम अपने परिवार वालों के लिए और खुद के लिए भी कुछ कपड़े खरीदे। और फिर वापस होटल आकर अपना सामान पैक करने लगे क्योंकि अगले सुबह ही हमें वहां से निकलना था। सामान की पैकिंग के बाद हम खाना खाकर सो गए।
        अगली सुबह हम सब तैयार होकर अपने सामान के साथ कमरे से नीचे उतरे और नाश्ता करके बस से निकल पड़े। रास्ते में मोनास्ट्री (Monastery)घुसे, यह जैन धर्मों का मंदिर था। अंदर जाकर हम थोड़ी देर बैठे, वहां का मंत्र जपे फिर निकल आए। फिर संत तेरेसा चर्च (St. Teresa Church) देखने गए यह बहुत ही बड़ा और सुंदर था। वहां से निकलकर हम मिरिक  झील  (Mirik Lake) देखने गए।
यह झील देखने में बहुत बड़ा और साफ - सुथरा था। यहां बहुत सारी रंग - बिरंगी मछलियां थीं। हम सब इसी झील के किनारे बैठकर दोपहर का खाना खाये। हमें यहां पर पिकनिक जैसा आनंद मिला, हम सब ने बहुत मस्ती किया। अंत में वापस लौटते समय हमने भारत और नेपाल की सीमा को सामने से देेेखा, 10 -15 मिनट के लिए हम नेपाल की भूमि पर रुके। और फिर वहां से सीधे NJP स्टेशन पहुंचे। 
        अंततः दार्जिलिंग की खूबसूरत यादों को दिल में समेटकर हम सब वापस रांची आ गए।

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